श्रीमद्भागवत महापुराण

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य

प्रथम स्कन्ध

(कुलअध्याय 19)

अध्याय
विषय-वस्तु
कुल श्लोक
01श्रीसूतजी से शौनकादि ऋषियों का प्रश्र मङ्गलाचरण
23
02भगवत्कथा और भगवद्भक्ति का माहात्म्य
34
03भगवान्‌ के अवतारों का वर्णन
45
04महर्षि व्यास का असन्तोष
33
05भगवान्‌ के यश-कीर्तन की महिमा और देवर्षि नारदजी का पूर्वचरित्र
40
06नारदजी के पूर्वचरित्र का शेष भाग
39
07अश्वत्थामा द्वारा द्रौपदी के पुत्रों का मारा जाना और अर्जुन के द्वारा अश्वत्थामा का मानमर्दन
58
08गर्भ में परीक्षित्‌ की रक्षा, कुन्तीके द्वारा भगवान्‌ की स्तुति और युधिष्ठिर का शोक
52
09युधिष्ठिरादि का भीष्मजी के पास जाना और भगवान्‌ श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए भीष्मजी का प्राणत्याग करना
49
10श्रीकृष्ण का द्वारका-गमन
36
11द्वारका में श्रीकृष्ण का राजोचत स्वागत
39
12परीक्षत का जन्म
36
13विदुरजी के उपदेश से धृतराष्ट्र और गान्धारी का वनमें जाना
59
14अपशकुन देखकर महाराज युधिष्ठिर का शंका करना और अर्जुन का द्वारका से लौटना
44
15कृष्ण विरह-व्यथित पाण्डवों का परीक्षित्‌ को राज्य देकर स्वर्ग सिधारना
51
16परीक्षित्‌ की दिग्विजय तथा धर्म और पृथ्वी का संवाद
36
17महाराज परीक्षित्‌ द्वारा कलियुग का दमन
45
18राजा परीक्षत को शृङ्गी ऋषिका शाप
50
19 परीक्षित्‌ का अनशन-व्रत और शुकदेवजी का आगमन 40

द्वितीय स्कन्ध

(कुलअध्याय 10)

तृतीय स्कन्ध

(कुलअध्याय 33)

अध्याय
विषय-वस्तु
कुल श्लोक
01उद्धव और विदुर की भेंट45
02 उद्धवजी द्वारा भगवान्‌ की बाल-लीलाओं का वर्णन
34
03भगवान्‌ के अन्य लीला-चरित्रों का वर्णन
28
04उद्धवजी से विदा होकर विदुरजी का मैत्रेय ऋषि के पास जाना
36
05विदुरजी का प्रश्र और मैत्रेयजी का सृष्टि-क्रम वर्णन
50
06विराट् शरीर की उत्पत्ति
40
07विदुरजी के प्रश्र
42
08ब्रह्माजी की उत्पत्ति
33
09ब्रह्माजी द्वारा भगवान्‌ की स्तुति
44
10दस प्रकार की सृष्टि का वर्णन
29
11मन्वन्तरादि कालविभागका वर्णन
41
12सृष्टि का विस्तार
56
13वाराह अवतार की कथा
50
14दिति का गर्भधारण
50
15जय-विजय को सनकादि का शाप
50
16जय-विजय का वैकुण्ठ से पतन
37
17हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष का जन्म तथा हिरण्याक्ष की दिग्विजय
31
18हिरण्याक्ष के साथ वराह भगवान्‌ का युद्ध
28
19हिरण्याक्ष-वध
38
20ब्रह्माजी की रची हुई अनेक प्रकार की सृष्टि का वर्णन
53
21कर्दमजी की तपस्या और भगवान्‌ का वरदान
56
22देवहूति के साथ कर्दम प्रजापति का विवाह
39
23कर्दम और देवहूति का विहार
57
24श्री कपिलदेवजी का जन्म
47
25देवहूति का प्रश्र तथा भगवान्‌ कपिल द्वारा भक्तियोग की महिमा का वर्णन
44
26महदादि भिन्न-भिन्न तत्त्वों की उत्पत्ति का वर्णन
72
27प्रकृति-पुरुष के विवेक से मोक्ष-प्राप्ति का वर्णन
30
28अष्टाङ्गयोग की विधि
44
29भक्ति का मर्म और काल की महिमा
45
30देह-गेह में आसक्त पुरुषों की अधोगति का वर्णन
34
31मनुष्ययोनि को प्राप्त हुए जीव की गति का वर्णन
48
32धूममार्ग और अर्चिरादि मार्ग से जानेवालों की गति का और भक्तियोग की उत्कृष्टता का वर्णन
43
33देवहूति को तत्त्वज्ञान एवं मोक्षपद की प्राप्ति37

चतुर्थ स्कन्ध

(कुल अध्याय 31)

अध्याय
विषय-वस्तु
कुल श्लोक
01स्वायम्भुव मनु की कन्याओं के वंश का वर्णन
66
02भगवान्‌ शिव और दक्षप्रजापति का मनोमालिन्य
35
03सती का पिता के यहाँ यज्ञोत्सव में जाने के लिये आग्रह करना
25
04सती का अग्रिप्रवेश
34
05वीरभद्रकृत दक्षयज्ञ विध्वंस और दक्षवध
26
06ब्रह्मादि देवताओं का कैलास जाकर श्री महादेवजी को मनाना
53
07दक्षयज्ञ की पूर्ति
61
08ध्रुव का वन-गमन
82
09ध्रुव का वर पाकर घर लौटना
67
10उत्तम का मारा जाना, ध्रुव का यक्षों के साथ युद्ध
30
11स्वायम्भुव मनु का ध्रुवजी को युद्ध बंद करने के लिये समझाना
35
12ध्रुवजी को कुबेर का वरदान और विष्णुलोक की प्राप्ति
52
13ध्रुववंश का वर्णन, राजा अङ्ग का चरित्र
49
14राजा वेन की कथा
46
15महाराज पृथु का आविर्भाव और राज्याभिषेक
26
16वन्दीजन द्वारा महाराज पृथु की स्तुति
27
17महाराज पृथु का पृथ्वी पर कुपित होना और पृथ्वी के द्वारा उनकी स्तुति करना
36
18पृथ्वी-दोहन
32
19महाराज पृथु के सौ अश्वमेध यज्ञ
42
20महाराज पृथु की यज्ञशाला में श्री विष्णु भगवान्‌ का प्रादुर्भाव
38
21महाराज पृथु का अपनी प्रजा को उपदेश
52
22महाराज पृथु को सनकादि का उपदेश
63
23राजा पृथु की तपस्या और परलोक गमन
39
24पृथु की वंश-परम्परा और प्रचेताओं को भगवान्‌ रुद्र का उपदेश
79
25पुरञ्जनोपाख्यान का प्रारम्भ
62
26राजा पुरञ्जन का शिकार खेलने वन में जाना और रानी का कुपित होना
26
27पुरञ्जनपुरी पर चण्डवेग की चढ़ाई तथा कालकन्या का चरित्र
30
28पुरञ्जन को स्त्रीयोनि की प्राप्ति और अविज्ञात के उपदेश से उसका मुक्त होना
65
29पुरञ्जनोपाख्यान का तात्पर्य
85
30प्रचेताओं को श्री विष्णु भगवान्‌ का वरदान
51
31प्रचेताओं को श्री नारदजी का उपदेश और उनका परमपद-लाभ 31

पंचम स्कन्ध

(कुल अध्याय 26)

अध्याय
विषय-वस्तु
कुल श्लोक
01प्रियव्रत-चरित्र
41
02आग्रीध्र-चरित्र
23
03राजा नाभि का चरित्र
20
04ऋषभदेवजी का राज्यशासन
19
05ऋषभजी का अपने पुत्रों को उपदेश देना और स्वयं अवधूत-वृत्ति ग्रहण करना
35
06ऋषभदेवजी का देहत्याग
19
07भरत-चरित्र
14
08भरतजी का मृग के मोह में फँसकर मृग-योनि में जन्म लेना
31
09भरतजी का ब्राह्मण-कुल में जन्म
20
10जडभरत और राजा रहूगण की भेंट
25
11राजा रहूगण को भरतजी का उपदेश
17
12रहूगण का प्रश्र और भरतजी का समाधान
16
13भवाटवी का वर्णन और रहूगण का संशयनाश
26
14भवाटवी का स्पष्टीकरण
46
15भरत के वंश का वर्णन
16
16भुवनकोश का वर्णन
29
17गङ्गाजी का विवरण और भगवान्‌ शङ्करकृत संकर्षणदेव की स्तुति
24
18भिन्न-भिन्न वर्षों का वर्णन
39
19किम्पुरुष और भारतवर्ष का वर्णन
31
20अन्य छ: द्वीपों तथा लोकालोक पर्वत का वर्णन
46
21सूर्य के रथ और उसकी गति का वर्णन
19
22भिन्न-भिन्न ग्रहों की स्थिति और गति का वर्णन
17
23शिशुमार चक्र का वर्णन
9
24राहु आदि की स्थिति, अतलादि नीचे के लोकों का वर्णन
31
25श्री सङ्कर्षणदेव का विवरण और स्तुति
15
26नरकों की विभिन्न गतियों का वर्णन 40

षष्ठ स्कन्ध

(कुल अध्याय 19)

अध्याय
विषय-वस्तु
कुल श्लोक
01अजामिलोपाख्यान का प्रारम्भ
68
02विष्णुदूतों द्वारा भागवत-धर्म-निरूपण और अजामिल का परमधाम गमन
49
03यम और यमदूतों का संवाद
35
04दक्ष के द्वारा भगवान्‌ की स्तुति और भगवान्‌ का प्रादुर्भाव
54
05श्री नारदजी के उपदेश से दक्ष-पुत्रों की विरक्ति तथा नारदजी को दक्ष का शाप
44
06दक्षप्रजापति की साठ कन्याओं के वंश का विवरण
45
07बृहस्पतिजी के द्वारा देवताओं का त्याग और विश्वरूप का देवगुरु के रूप में वरण
40
08नारायण कवच का उपदेश
42
09विश्वरूप का वध, वृत्रासुर द्वारा देवताओं की हार और भगवान्‌ की प्रेरणा से देवताओं का दधीचि ऋषि के पास जाना
55
10देवताओं द्वारा दधीचि ऋषि की अस्थियों से वज्र-निर्माण और वृत्रासुर की सेना पर आक्रमण
33
11वृत्रासुर की वीरवाणी और भगवत्प्राप्ति
27
12वृत्रासुर का वध
35
13इन्द्र पर ब्रह्महत्या का आक्रमण
23
14वृत्रासुर का पूर्व-चरित्र
61
15चित्रकेतु को अङ्गिरा और नारदजी का उपदेश
28
16चित्रकेतु का वैराग्य तथा सङ्कर्षणदेव के दर्शन
65
17चित्रकेतु को पार्वतीजी का शाप
41
18अदिति और दिति की सन्तानों की तथा मरुद्गण की उत्पत्ति का वर्णन
78
19पुंसवन-व्रत की विधि 28

सप्तम स्कन्ध

(कुल अध्याय 15)

अध्याय
विषय-वस्तु
कुल श्लोक
01नारद-युधिष्ठिर-संवाद और जय-विजय की कथा
47
02हिरण्याक्ष का वध होने पर हिरण्यकशिपु का अपनी माता और कुटुम्बियों को समझाना
61
03हिरण्यकशिपु की तपस्या और वर-प्राप्ति
38
04हिरण्यकशिपु के अत्याचार और प्रह्लादके गुणों का वर्णन
46
05हिरण्यकशिपु के द्वारा प्रह्लादजी के वध का प्रयत्न
57
06प्रह्लादजी का असुर-बालकों को उपदेश
30
07प्रह्लादजी द्वारा माता के गर्भ में प्राप्त हुए नारदजी के उपदेश का वर्णन
55
08नृसिंह भगवान्‌ का प्रादुर्भाव, हिरण्यकशिपु का वध एवं ब्रह्मादि देवताओं द्वारा भगवान्‌ की स्तुति
56
09प्रह्लादजी के द्वारा नृसिंह भगवान्‌ की स्तुति
55
10प्रह्लादजी के राज्याभिषेक और त्रिपुरदहन की कथा
71
11मानवधर्म, वर्णधर्म और स्त्रीधर्म का निरूपण
35
12ब्रह्मचर्य और वानप्रस्थ-आश्रमों के नियम
31
13यतिधर्म का निरूपण और अवधूत-प्रह्लाद-संवाद
46
14गृहस्थ सम्बन्धी सदाचार
42
15गृहस्थों के लिये मोक्षधर्म का वर्णन 80

अष्टम स्कन्ध

(कुल अध्याय 24)

अध्याय
विषय-वस्तु
कुल श्लोक
01मन्वन्तरों का वर्णन
33
02ग्राह के द्वारा गजेन्द्र का पकड़ा जाना
33
03गजेन्द्र के द्वारा भगवान्‌ की स्तुति और उसका संकट से मुक्त होना
33
04गज और ग्राह का पूर्व-चरित्र तथा उनका उद्धार
26
05देवताओं का ब्रह्माजी के पास जाना और ब्रह्माकृत भगवान्‌ की स्तुति
50
06देवताओं और दैत्यों का मिलकर समुद्र-मन्थन के लिये उद्योग करना
39
07समुद्र-मन्थन का आरम्भ और भगवान्‌ शङ्कर का विषपान
46
08समुद्र से अमृत का प्रकट होना और भगवान्‌ का मोहिनी-अवतार ग्रहण करना
46
09मोहिनीरूप से भगवान्‌ के द्वारा अमृत बाँटा जाना
29
10देवासुर-संग्राम
57
11देवासुर-संग्राम की समाप्ति
48
12मोहिनीरूप को देखकर महादेवजी का मोहित होना
47
13आगामी सात मन्वन्तरों का वर्णन
36
14मनु आदि के पृथक्-पृथक् कर्मों का निरूपण
11
15राजा बलि की स्वर्ग पर विजय
36
16कश्यपजी के द्वारा अदिति को पयोव्रत का उपदेश
62
17भगवान्‌ का प्रकट होकर अदिति को वर देना
28
18वामन भगवान्‌ का प्रकट होकर राजा बलि की यज्ञशाला में पधारना
32
19भगवान्‌ वामन का बलि से तीन पग पृथ्वी माँगना, बलि का वचन देना और शुक्राचार्यजी का उन्हें रोकना
43
20भगवान्‌ वामनजी का विराट् रूप होकर दो ही पग से पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लेना
34
21बलि का बाँधा जाना
34
22बलि के द्वारा भगवान्‌ की स्तुति और भगवान्‌ का उस पर प्रसन्न होना
36
23बलि का बन्धन से छूटकर सुतल लोक को जाना
31
24भगवान्‌ के मत्स्यावतार की कथा 61

नवम स्कन्ध

(कुल अध्याय 24)

अध्याय
विषय-वस्तु
कुल श्लोक
01वैवस्वत मनु के पुत्र राजा सुद्युम्र की कथा
42
02पृषध्र आदि मनु के पाँच पुत्रों का वंश
36
03महर्षि च्यवन और सुकन्या का चरित्र, राजा शर्याति का वंश
36
04नाभाग और अम्बरीष की कथा
71
05दुर्वासाजी की दु:ख-निवृत्ति
27
06इक्ष्वाकु के वंश का वर्णन, मान्धाता और सौभरि ऋषि की कथा
55
07राजा त्रिशङ्कु और हरिश्चन्द्र की कथा
27
08सगर-चरित्र
31
09भगीरथ-चरित्र और गङ्गावतरण
49
10भगवान्‌ श्रीराम की लीलाओं का वर्णन
56
11भगवान्‌ श्रीराम की शेष लीलाओं का वर्णन
36
12इक्ष्वाकुवंश के शेष राजाओं का वर्णन
16
13राजा निमि के वंश का वर्णन
27
14चन्द्रवंश का वर्णन
49
15ऋचीक, जमदग्रि और परशुरामजी का चरित्र
41
16परशुरामजी के द्वारा क्षत्रिय-संहार और विश्वामित्रजी के वंश की कथा
37
17क्षत्रवृद्ध, रजि आदि राजाओं के वंश का वर्णन
18
18ययाति चरित्र
51
19ययाति का गृह-त्याग
29
20पूरु के वंश, राजा दुष्यन्त और भरत के चरित्र का वर्णन
39
21भरतवंश का वर्णन, राजा रन्तिदेव की कथा
36
22पाञ्चाल, कौरव और मगधदेशीय राजाओं के वंश का वर्णन
49
23अनु, द्रुह्यु, तुर्वसु और यदु के वंश का वर्णन
39
24विदर्भ के वंश का वर्णन 67

दशम स्कन्ध

(कुल अध्याय 90)

अध्याय
विषय-वस्तु
कुल श्लोक
01भगवान्‌ के द्वारा पृथ्वी को आश्वासन, वसुदेव-देवकी का विवाह और कंस के द्वारा देवकी के छ: पुत्रों की हत्या
69
02भगवान्‌ का गर्भ-प्रवेश और देवताओं द्वारा गर्भ-स्तुति
42
03भगवान्‌ श्रीकृष्ण का प्राकट्य
53
04कंस के हाथ से छूटकर योगमाया का आकाश में जाकर भविष्यवाणी करना
46
05गोकुल में भगवान्‌ का जन्म-महोत्सव
32
06पूतना-उद्धार
44
07शकट-भञ्जन और तृणावर्त-उद्धार
37
08नामकरण-संस्कार और बाललीला
52
09श्रीकृष्ण का ऊखल से बाँधा जाना
23
10यमलार्जुन का उद्धार
43
11गोकुल से वृन्दावन जाना तथा वत्सासुर और बकासुर का उद्धार
59
12अघासुर का उद्धार
44
13ब्रह्माजी का मोह और उसका नाश
64
14ब्रह्माजी के द्वारा भगवान्‌ की स्तुति
61
15धेनुकासुर का उद्धार और ग्वालबालों को कालियनाग के विष से बचाना
52
16कालिय पर कृपा
57
17कालिय के कालियदह में आने की कथा तथा भगवान्‌ का व्रजवासियों को दावानल से बचाना
25
18प्रलम्बासुर-उद्धार
32
19गौओं और गोपों को दावानल से बचाना
16
20वर्षा और शरद् ऋतु का वर्णन
49
21वेणुगीत
20
22चीरहरण
38
23यज्ञ-पत्नियों पर कृपा
52
24इन्द्रयज्ञ-निवारण
38
25गोवद्र्धन धारण
33
26नन्दबाबा से गोपों की श्रीकृष्ण के प्रभाव के विषय में बातचीत
25
27श्रीकृष्ण का अभिषेक
28
28वरुणलोक से नन्दजी को छुड़ाकर लाना
17
29रासलीला का आरम्भ
48
30श्रीकृष्ण के विरह में गोपियों की दशा
45
31गोपिकागीत
19
32भगवान्‌ का प्रकट होकर गोपियों को सान्त्वना देना
22
33महारास
40
34सुदर्शन और शङ्खचूड का उद्धार
32
35युगलगीत
26
36अरिष्टासुर का उद्धार और कंस का श्रीअक्रूरजी को व्रज में भेजना
40
37केशी और व्योमासुर का उद्धार तथा नारदजी के द्वारा भगवान्‌ की स्तुति
34
38अक्रूरजी की व्रज-यात्रा
43
39श्रीकृष्ण-बलराम का मथुरागमन
57
40अक्रूरजी के द्वारा भगवान्‌ श्रीकृष्ण की स्तुति
30
41श्रीकृष्ण का मथुराजी में प्रवेश
52
42कुब्जा पर कृपा, धनुषभङ्ग और कंस की घबड़ाहट
38
43कुवलयापीड़ का उद्धार और अखाड़े में प्रवेश
40
44चाणूर, मुष्टिक आदि पहलवानों का तथा कंस का उद्धार
51
45श्रीकृष्ण-बलराम का यज्ञोपवीत और गुरुकुलप्रवेश
50
46उद्धवजी की व्रजयात्रा
49
47उद्धव तथा गोपियों की बातचीत और भ्रमरगीत
69
48भगवान्‌ का कुब्जा और अक्रूरजी के घर जाना
36
49अक्रूरजी का हस्तिनापुर जाना
31
50जरासन्ध से युद्ध और द्वारकापुरी का निर्माण ५०
58
51कालयवन का भस्म होना, मुचुकुन्द की कथा
58
52द्वारका-गमन, श्रीबलरामजी का विवाह तथा श्रीकृष्ण के पास रुक्मिणीजी का सन्देशा लेकर ब्राह्मण का आना
44
53रुक्मिणीहरण
57
54शिशुपाल के साथी राजाओं की और रुक्मी की हार तथा श्रीकृष्ण-रुक्मिणी-विवाह
60
55प्रद्युम्र का जन्म और शम्बरासुर का वध
40
56स्यमन्तकमणि की कथा, जाम्बवती और सत्यभामा के साथ श्रीकृष्ण का विवाह
45
57स्यमन्तक-हरण, शतधन्वा का उद्धार और अक्रूरजी को फिर से द्वार का बुलाना
42
58भगवान्‌ श्रीकृष्ण के अन्यान्य विवाहों की कथा
58
59भौमासुर का उद्धार और सोलह हजार एक सौ राजकन्याओं के साथ भगवान्‌ का विवाह
45
60श्रीकृष्ण-रुक्मिणी-संवाद
59
61भगवान्‌ की सन्तति का वर्णन तथा अनिरुद्ध के विवाह में रुक्मी का मारा जाना
40
62ऊषा-अनिरुद्ध-मिलन
35
63भगवान्‌ श्रीकृष्ण के साथ बाणासुर का युद्ध
53
64नृग राजा की कथा
44
65श्रीबलरामजी का व्रजगमन
32
66पौण्ड्रक और काशिराज का उद्धार
43
67द्विविद का उद्धार
28
68कौरवों पर बलरामजी का कोप और साम्ब का विवाह
54
69देवर्षि नारदजी का भगवान्‌ की गृहचर्या देखना
45
70भगवान्‌ श्रीकृष्ण की नित्यचर्या और उनके पास जरासन्ध के कैदी राजाओं के दूत का आना
47
71श्रीकृष्ण भगवान्‌ का इन्द्रप्रस्थ पधारना
46
72पाण्डवों के राजसूययज्ञ का आयोजन और जरासन्ध का उद्धार
48
73जरासन्ध के जेल से छूटे हुए राजाओं की विदाई और भगवान्‌ का इन्द्रप्रस्थ लौट आना
35
74भगवान्‌ की अग्रपूजा और शिशुपाल का उद्धार
54
75राजसूय यज्ञ की पूर्ति और दुर्योधन का अपमान
40
76शाल्व के साथ यादवों का युद्ध
33
77शाल्व-उद्धार
37
78दन्तवक्र और विदूरथ का उद्धार तथा तीर्थयात्रा में बलरामजी के हाथ से सूतजी का वध
40
79बल्वल का उद्धार और बलरामजी की तीर्थयात्रा
34
80श्रीकृष्ण के द्वारा सुदामाजी का स्वागत
45
81सुदामाजी को ऐश्वर्य की प्राप्ति
41
82भगवान्‌ श्रीकृष्ण-बलराम से गोप-गोपियों की भेंट
49
83भगवान्‌ की पटरानियों के साथ द्रौपदी की बातचीत
43
84वसुदेवजी का यज्ञोत्सव
71
85श्रीभगवान्‌ के द्वारा वसुदेवजी को ब्रह्मज्ञान का उपदेश तथा देवकी जी के छ: पुत्रों को लौटा लाना
59
86सुभद्राहरण और भगवान्‌ का मिथिलापुरी में राजा जनक और श्रुतदेव ब्राह्मण के घर एक ही साथ जाना
59
87वेदस्तुति
28
88शिवजी का सङ्कटमोचन
40
89भृगुजी के द्वारा त्रिदेवों की परीक्षा तथा भगवान्‌ का मरे हुए ब्राह्मण-बालकों को वापस लाना
66
90भगवान्‌ कृष्ण के लीला-विहार का वर्णन 50

एकादश स्कन्द

(कुल अध्याय 31)

अध्याय
विषय-वस्तु
कुल श्लोक
01यदुवंश को ऋषियों का शाप
24
02वसुदेवजी के पास श्रीनारदजी का आना और उन्हें राजा जनक तथा नौ योगीश्वरों का संवाद सुनाना
55
03माया, माया से पार होने के उपाय तथा ब्रह्म और कर्मयोग का निरूपण
55
04भगवान्‌ के अवतारों का वर्णन
23
05भक्तिहीन पुरुषों की गति और भगवान्‌ की पूजाविधि का वर्णन
52
06देवताओं की भगवान्‌ से स्वधाम सिधारने के लिये प्रार्थना, यादवों को प्रभासक्षेत्र जाने की तैयारी, उद्धव का भगवान्‌ के पास आना
50
07अवधूतोपाख्यान—पृथ्वी से लेकर कबूतर तक आठ गुरुओं की कथा
74
08अवधूतोपाख्यान—अजगर से लेकर पिङ्गला तक नौ गुरुओं की कथा
44
09अवधूतोपाख्यान—कुरर से लेकर भृंगी तक सात गुरुओं की कथा
33
10लौकिक तथा पारलौकिक भोगों की असारता का निरूपण
49
11बद्ध, मुक्त और भक्तजनों के लक्षण
49
12सत्सङ्ग की महिमा और कर्म तथा कर्मत्याग की विधि
24
13हंसरूप से सनकादि को दिये हुए उपदेश का वर्णन
42
14भक्तियोग की महिमा तथा ध्यानविधि का वर्णन
46
15भिन्न-भिन्न सिद्धियों के नाम और लक्षण
36
16भगवान्‌ की विभूतियों का वर्णन
44
17वर्णाश्रम-धर्म-निरूपण
58
18वानप्रस्थ और संन्यासी के धर्म
48
19भक्ति, ज्ञान और यम-नियमादि साधनों का वर्णन
45
20ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग
37
21गुण-दोष-व्यवस्था का स्वरूप और रहस्य
43
22तत्त्वों की संख्या और पुरुष-प्रकृति-विवेक
60
23एक तितिक्षु ब्राह्मण का इतिहास
62
24सांख्ययोग
29
25तीनों गुणों की वृत्तियों का निरूपण
36
26पुरूरवा की वैराग्योक्ति -1
35
27पुरूरवा की वैराग्योक्ति -2
55
28परमार्थ-निरूपण २८
44
29भागवतधर्मों का निरूपण और उद्धवजी का बदरिकाश्रम-गमन
49
30यदुकुल का संहार
50
31श्रीभगवान्‌ का स्वधामगमन28

द्वादश स्कन्ध

(कुल अध्याय 13)

अध्याय
विषय-वस्तु
कुल श्लोक
01कलियुग के राजवंशों का वर्णन
43
02कलियुगके धर्म
44
03राज्य, युगधर्म और कलियुग के दोषों से बचने का उपाय: नाम-सङ्कीर्तन
52
04चार प्रकार के प्रलय
43
05श्रीशुकदेवजी का अन्तिम उपदेश
13
06परीक्षित्‌ की परमगति, जनमेजय का सर्पसत्र और वेदों के शाखाभेद
80
07अथर्ववेद की शाखाएँ और पुराणों के लक्षण
25
08मार्कण्डेयजी की तपस्या और वर-प्राप्ति
49
09मार्कण्डेयजी का माया-दर्शन
34
10मार्कण्डेयजी को भगवान्‌ शङ्कर का वरदान
42
11भगवान्‌ के अङ्ग, उपाङ्ग और आयुधों का रहस्य तथा विभिन्न सूर्यगणों का वर्णन
50
12श्रीमद्भागवत की संक्षिप्त विषय-सूची
68
13विभिन्न पुराणों की श्लोक-संख्या और श्रीमद्भागवत की महिमा 23

श्रीस्कान्दे माहात्म्यम्

(कुल अध्याय 04)

श्री सद्गुरु महाराज की जय!